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CORONA IMPACT ON INCENSE INDUSTRY

वैश्विक कोरोना महामारी से जूझता सम्पूर्ण विश्व कुदरत की मार के आगे नतमस्तक है। परमात्मीय सृष्टि के सूक्ष्मतम वायरस ने मानव की तमाम उपलब्धियों और अहंकार को धता बताने को मजबूर कर दिया है ।

पूरे मानव – जाति के ताकतवर वैज्ञानिकों का ज्ञान इस वायरस पर बेअसर होता दिखाई दे रहा है ।

अवश्य ही कोरोना-वायरस का सृजन भौतिक व बनावटी जिन्दगी की ऊँचाई पर चढ़ते मनुष्यों को उनकी वास्तविकता, जीवन-यापन की न्यूनतम आवश्यकता व प्राकृतिक शुद्धता के महत्व को समझाने के लिए हुआ है ।

भारतीय अगरबत्ती उद्योग का कोरोना-काल तो पिछले वर्ष 2019 के अगस्त माह से ही प्रारम्भ हो गया था जब सरकार ने आयातित कच्ची अगरबत्ती पर रोक लगा दी थी । देखते ही देखते अप्रत्याशित सरकारी निर्णय से सारा अगरबत्ती  उद्योग चरमरा उठा था । कारण कि देश इतनी बड़ी तादाद में कच्ची अगरबत्ती के उत्पादन के लिए तैयार नहीं था । दीपावली 2019 का सीजन सम्पूर्ण देश के अगरबत्ती व्यवसायियों के लिए निराशाजनक ही रहा ।

जैसा कि आप लोगों की जानकारी में हो कि इसी पत्रिका के माध्यम से कुछ  महीने पूर्व मैनें सम्पूर्ण भारतीय उद्योग को आगाह किया था कि आज से 10 वर्ष पूर्व भारतीय अगरबत्ती उद्योग पूर्णतः आत्मनिर्भर था और देखते ही देखते सम्पूर्ण कच्चे माल के लिए विदेशों पर निर्भर हो गया । मुझे इस स्थिति से आने वाले संकट का पहले से ही अनुमान था । फिर भी अगरबत्ती संगठनों ने कोई भी ठोस कदम नहीं उठाये ।

अगरबत्ती निर्माण के लिए मुख्य रूप से काम में आने वाली, जिसे हम अगरबत्ती की रीढ़ कह सकते है, यानि बांस की कांटी की निर्भरता आज भी चीन व वियतनाम जैसे देश पर ही है । उद्योग अपनी आवश्यकता का 10% उत्पादन ही अपने देश में कर पाता है । 90% बांस – कांटी का आयात चीन व वियतनाम से ही होता है ।

वर्तमान में चीन के साथ देश के कटु-संबंधों के कारण चीनी व्यापार-नीति में आमूलचूल परिवर्तन हुए हैं । लिहाजा चीन से सभी तरह के आयात पर रोक लगाने की भारतीय नीति का प्रत्यक्ष संकट अगरबत्ती उद्योग पर भी आ पड़ा है । बांस – कांटी की कमी से सम्पूर्ण उद्योग कच्ची अगरबत्ती के निर्माण में अपने आप को असहाय महसूस कर रहा है । हजारों की संख्या में मशीनें बेकार पड़ी हैं । गृहउद्योग  कर्मी के आगे रोजगार का संकट खडा हो गया है । कच्ची अगरबत्ती के मूल्य में 10 से 15 रूपये प्रति किलो की वृद्धि हो गयी है । नकद रूपये देने पर भी कच्ची बत्ती की किल्लत का सामना हर अगरबत्ती निर्माता कर रहा है ।

अगरबत्ती निर्माण का दूसरा आधारभूत प्राण उसकी सुगंधी है । सुगंधी यानि परफ्यूम की कीमत पर भी जबरदस्त उछाल बीते कुछ दिनों में आया है । जिसका कारण है ज्यादातर परफ्यूम बनाने में इस्तेमाल होने वाले क्रिस्टल, पाउडर व केमिकल का आयात जो कि चीन से किया जाता था । चीनी-आयात पर रोक लगने से तमाम परफ्यूम बनाने वाली कम्पनियों के उत्पादन पर बहुत बड़ा झटका लगा है । औने पौने दामों में देश में मौजूद स्टाॅक की खरीद-फरोख्त में तमाम कम्पनियां लगी हुई हैं । इस कारण से परफ्यूम के दामों में अप्रत्याशित वृद्धि के साथ-साथ सप्लाई का संकट भी अगरबत्ती उद्योग को झेलना पड़ रहा है ।

उपर्युक्त निर्माण संबंधी तमाम समस्याओं से अगरबत्ती-उद्योग व्यवसायी जूझते हुऐ किसी तरह अगरबत्ती निर्माण कर, अपने उद्योग पर आश्रित श्रमिकों का पेट भरने की कोशिश तो कर रहे हैं परन्तु माल बनाने के लिए कोरोना काल में उनके सामने जगह की समस्या भी उत्पन्न हो गयी है। जहाँ 200 sqaure feet जगह में वह 10 लेबर को बैठाकर उत्पादन कर सकता था अब सोशल डिस्टेंसिंग की पालना में मात्र 5 लेबर ही बैठा सकता है । ऐसे में उसके सामने फैक्ट्री प्राॅडक्शन एरिया बढ़ाने की भी समस्या उत्पन्न हो गयी है ।

इन सब परिस्थितियों से उबरते हुए  उद्यमी जब माल का निर्माण कर लेता है तो उसके सामने कोरोना-काल की वजह से विपणन की समस्या आ खड़ी होती हैै । जैसे-

1. मार्केटिंग के लिए सेल्समैन ट्यूर नहीं कर सकते हैं ।

2. डिलीवरी के लिए ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था सुचारू नहीं है ।

3. कई ग्राहकों पर पिछले वित्तीय वर्ष की राशि बकाया है, जिसकी वसूली के लिए भी कोई नहीं जा सकता है ।

4. तमाम धर्म स्थल पिछले चार महीनों से लाॅकडाउन है । जो कि अगरबत्ती के उपभोग की महत्वपूर्ण जगह है ।

5. तमाम पूजा-पाठ व सामूहिक धार्मिक कार्य में भी पाबन्दी है ।

इस तरह आप देखते हैं कि आस्था व भक्ति का महत्वपूर्ण आधार अगरबत्ती उद्योग पूर्णतः राहुग्रस्त है ।  ऐसे में कहा जाना चाहिए कि लोगों को मुश्किल से निकालने के लिए, ईश्वरीय श्रद्धा की प्रतीक अगरबत्ती को भी ईश्वरीय चमत्कार का इंतजार है जिससे यह अपने सरल व मूल रूप में पुनः स्थापित हो सके ।

अगरबत्ती उद्योग का भविष्य व संकट से उबरने की बात पर चर्चा करें तो निम्नलिखित बातों पर गौर करना जरूरी है –

बांस की फसल व कांटी बनाने के उद्योगों का तेजी से स्थानीय स्तर पर प्रसार हो ।

बिना बांस के बनने वाले उत्पाद जैसे धूप स्टिक, कोन व धूप के निर्माण व प्रचार पर जोर देना चाहिए ।

प्राकृतिक पदार्थो से तैयार सुगंधी ही अगरबत्ती, धूप, स्टिक व कोन बनाने में काम में आनी चाहिए । रासायनिक सुगंधी का उपयोग स्वास्थ्य पर विपरीत असर कर सकता है व उसके निर्माणादि में भी प्रदूषण उत्पन्न होता है । इस दिशा में ‘फूल ब्राण्ड’ ने प्राकृतिक फूल-पत्तों आदि के वेस्ट से अगरबत्ती बनाकर पूरे विश्व में अपनी पहचान बनायी है ।

ऑफलाइन यानि व्यक्तिगत मार्केटिंग की अपेक्षा ऑनलाइन मार्केटिंग की तरफ विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए ।  इसमें नकद भुगतान (ऑनलाइन) भी मिलता है, मुनाफा भी अधिक है व समय की बचत भी है ।

अगर इन सब बातों पर ध्यान दिया जाये  तो अगरबत्ती उद्योग का भविष्य अवश्य ही पुनः दैदीप्यमान हो सकता है । कहते हैं कि ‘‘प्रयासेन  किम् न लभ्यते’’ यानि सम्पूर्ण निष्ठा, मेहनत व लगन से, डूबते हुए अगरबत्ती उद्योग को वापस लहरों के ऊपर शानदार तरीके से पुनः स्थापित किया जा सकता है । बस जरूरत है सभी अगरबत्ती संगठनों के दृढ़ संकल्प की । निष्क्रिय संगठन खुद भी टूटता है व सदस्यों को भी डूबोता है। संगठन में ताकत होनी चाहिए। अकेला चना भाड़ नहीं फोडता। इस मौजूदा संकट का समाधान अवश्य है, भविष्य भी उज्जवल है । इंतजार बस संगठनों के सक्रिय होने का है ।

लेखक – पवन अग्रवाल

अरोमैटिका, जयपुर

ये लेखक के निजी विचार हैं ।


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