#आत्मनिर्भर_भारत अमिताभ बच्चन की गुलाबो सिताबो, कुछ दिनों में अमेज़न प्राइम के प्लेटफार्म पर release हो रही है । मुझे लगता है कि कोरोना के चलते, फ़िल्म निर्माता के पास भी कोई ऑप्शन नहीं बचा होगा, इसे डिजिटल प्लेटफार्म के हवाले करने के अलावा । निर्माता, कलाकार तो ठीक है, सबको अपना पैसा मिल गया, लेकिन.. फिल्मों के डिस्ट्रीब्यूटर और सिनेमाघर, साइडलाइन हो गए हैं जो अपने आप में एक बड़ी इंडस्ट्री है । इसमें कुछ बड़े प्लेयर भी मौजूद हैं जिनको नुकसान हो रहा है, जैसे PVR, Inox, जो हो सकता है थोड़ी बहुत लॉबिंग कर पाएं । संभव है, निर्माता भी उतना मुनाफा ना ले पाए, जितना कुछ बड़ी फिल्में बिज़नेस कर लेती है (200-300 करोड़ या उससे भी ज्यादा का) क्योंकि अमेज़न इतना पैसा शायद ना दे पाये । लेकिन इससे, लाखों लोगों का रोजगार, (जिनमें, फ़िल्म डिस्ट्रीब्यूटर और सिनेमाघर के अलावा, वहां पार्किंग का ठेका लेने वाले लोग, कैंटीन चलाने वाले लोग, सिनेमाघर के बाहर ठेला लगाकर कॉर्न बेचने वाले लोग शामिल हैं ।) सिर्फ एक अमेज़न के हाथ में चला जाता है । वीडियो कंटेंट डिलीवरी मॉडल तो बहुत ज्यादा रोजगार भी generate नहीं करता क्योंकि यहां मैनपावर की आवश्यकता ही नहीं हैं । ये तो एक सीधा सीधा ऐसा डिजिटल प्लेटफार्म है जिससे जॉब्स या छोटे रोजगारपरक लोगों का नुकसान होना तय है । यानी एक अमेज़न के डिजिटल प्राइम जैसे प्लेटफार्म में लाखों लोगों की नौकरी छीनने का दम है । मार्केटप्लेस (जैसे वालमार्ट और अमेज़न) में तो फिर भी कुछ हद तक रोजगार generate हो जाता है, डिलीवरी इत्यादि का । लेकिन फिर भी ऐसे किसी भी मॉडल में छोटे के बड़े बनने का कोई स्कोप नहीं है, बड़े के और बड़े बनने का ही स्कोप है सिर्फ । यानी डिजिटल पूंजीवाद का एक बड़ा मॉडल खड़ा हो चुका है, जिसमें आम आदमी के लिए कोई स्कोप नहीं है । अभी भले ही, ये कोरोना के चलते हुआ हो, लेकिन अगर ये मॉडल भविष्य है तो कितने लोगों का नुकसान तय है । मार्केटप्लेस में देश का सबसे बड़ा शेयर दो ही कंपनी के पास है, अमेज़न और फ्लिपकार्ट (यानी वालमार्ट), और दोनों ही विदेशी हैं । लोग ओला, Uber, फ्लिपकार्ट या इस तरह के प्लेटफॉर्म्स को shared economy की संज्ञा देते हैं जबकि ये पूंजीवादी व्यवस्था से ज्यादा कुछ नहीं है । कैसे ? क्योंकि सारा कंट्रोल तो इन लोगों के हाथ में ही है । पहले ओला और उबेर ने लोगों को लाखों रुपये महीने तक कमाने की लत लगा दी और फिर अचानक, एक क्लिक से ही अल्गोरिथम चेंज कर दिया । गाड़ी के मालिक से ओला का ड्राइवर बने आदमी के हाथ में कुछ रहा ही नहीं और वो 20000 कमाने के लिए 12-14 घंटे काम करने के लिए मजबूर हो गया । सारी मूवीज अगर amazon prime पर रिलीज होने लग गईं तो थिएटर / फ़िल्म डिस्ट्रीब्यूशन वालों का क्या होगा । सारे प्रोडक्ट ही अगर अमेज़न या फ्लिपकार्ट पर बिकने लग गए तो करोड़ों, रिटेलर और डिस्ट्रीब्यूशन के लोगों का क्या होगा । देश को बनाना या बिगाड़ना सरकार के हाथ में है और सब कुछ पूंजीवादी व्यवस्था के हाथ में ना चला जाये, ये देखना सरकार का ही काम है । हर आदमी का अपना सोचना है और हर आदमी व्यवसाय करना भी नहीं चाहता । लेकिन जो करना चाहते हैं वो अपना काम ना गवां दें या किसी पूंजीपति के हाथों में काम ना करें, इससे अच्छा है सरकार अभी कुछ कदम उठाए । मेरे जैसे उद्यमी, आज भी 1 रुपया स्वरोजगार से कमाना ज्यादा पसंद करेंगे, वजाय 2 रुपये की नौकरी किसी अमेज़न या वालमार्ट के यहां करने के । लाखों छोटे मरें, इसकी जगह एक बड़े पर कुछ बंदिश लगा देना बेहतर है । नहीं तो कैसे, #आत्मनिर्भर बनेगा भारत ।